Saved for Now: Nimisha Priya’s Fight Continues

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Nimisha Priya

निमिषा प्रिया केस 2025: मौत की सजा टली, लेकिन संघर्ष अभी बाकी है

केरल की नर्स निमिषा प्रिया को यमन में मौत की सजा सुनाई गई थी। जानिए इस केस की पूरी कहानी, वर्तमान स्थिति और भारत सरकार की कोशिशें।

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केरल के पलक्कड़ जिले की रहने वाली निमिषा प्रिया, एक प्रशिक्षित नर्स, साल 2008 में बेहतर जीवन और आय के अवसरों की तलाश में यमन चली गईं। एक भारतीय महिला के लिए अरब देशों में स्वतंत्र रूप से काम करना आसान नहीं होता, लेकिन निमिषा ने अपने मेहनत और कौशल के दम पर एक स्थानीय यमनी नागरिक तालाल अब्दो महदी के साथ मिलकर सना शहर में एक क्लिनिक की शुरुआत की।

क्लिनिक से क़ैदखाना बनने की कहानी

जल्द ही तालाल के साथ रिश्ते तनावपूर्ण हो गए। रिपोर्ट्स के मुताबिक, महदी ने न सिर्फ निमिषा का पासपोर्ट जब्त कर लिया, बल्कि उसे मानसिक और शारीरिक रूप से भी प्रताड़ित किया। पुलिस में शिकायत करने पर भी कोई सहायता नहीं मिली। ऐसे में, अपनी आज़ादी वापस पाने की कोशिश में निमिषा ने एक खतरनाक कदम उठाया — उन्होंने महदी को बेहोश करने के लिए एक दवा (केटामीन) का इंजेक्शन दिया, लेकिन दुर्भाग्यवश उसकी मौत हो गई।

2017 में उन्हें गिरफ्तार किया गया और 2018 में मौत की सज़ा सुनाई गई। यह निर्णय उस देश की न्यायिक प्रक्रिया के तहत लिया गया, जहां भाषा, संस्कृति, और कानूनी सहायता की भारी कमी थी। हैरानी की बात ये है कि पूरा ट्रायल अरबी भाषा में चला, और उन्हें कोई अनुवादक या उचित कानूनी सहायता भी नहीं दी गई।

रक्तपात मुआवज़ा (Diyah) Blood Money

इस्लामी क़ानून के अंतर्गत, किसी की जान लेने के मामले में पीड़ित परिवार को रक्तपात मुआवज़ा (दियाह) देकर क्षमा मांगी जा सकती है। निमिषा की मां और “सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल” जैसे संगठनों ने अब तक करीब ₹48 लाख + (USD $58,000) इकट्ठा किए हैं ताकि पीड़ित परिवार को मुआवज़ा दिया जा सके।

Nimisha Priya

भारत सरकार और धार्मिक कूटनीति की भूमिका

भारत सरकार की ओर से विदेश मंत्रालय लगातार यमन सरकार से संपर्क में है। इसके साथ ही, कांतिपुरम ए.पी. अबूबक्कर मुसलियार जैसे धार्मिक नेताओं और ईसाई प्रचारक डॉ. के.ए. पॉल ने यमनी धार्मिक संगठनों से संवाद कर फांसी की तारीख को टालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

फांसी की निर्धारित तारीख 16 जुलाई 2025 थी, लेकिन अंतिम समय पर इसे टाल दिया गया, जो कि एक बड़ी कूटनीतिक और मानवीय जीत कही जा सकती है। फिर भी, पीड़ित परिवार अब तक माफ़ी देने को तैयार नहीं है।

न्याय v/s बदला

इस केस में सबसे बड़ा सवाल है: क्या किसी महिला की आज़ादी की लड़ाई, जिसमें दुर्भाग्य से एक जान चली गई, का परिणाम मौत ही होना चाहिए?
क्या यमन की कानूनी प्रणाली में एक विदेशी महिला को उचित सुनवाई मिली?
और सबसे जरूरी बात — क्या मानवता का रास्ता माफ़ी और पुनर्वास है, या सिर्फ सज़ा?

निमिषा प्रिया की कहानी सिर्फ एक कानूनी मामला नहीं है, यह एक महिला के आत्म-सम्मान, विदेशी जमीन पर संघर्ष, और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की परीक्षा है।
यह मामला हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हर न्यायिक फैसला, खासकर जब भाषा और सांस्कृतिक अवरोध हों, वाकई न्यायपूर्ण होता है?

आपका क्या मानना है?

क्या आपको लगता है कि निमिषा को दूसरा मौका मिलना चाहिए?
क्या यमन सरकार और पीड़ित परिवार को मुआवज़ा स्वीकार कर, मानवता दिखानी चाहिए?       कृपया इस पोस्ट को साझा करें और इस चर्चा का हिस्सा बनें।

 

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