अक्षय तृतीया का महत्व
कई कारणों से अक्षय तृतीया को वर्ष का सबसे शुभ दिन माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, अक्षय तृतीया ने सतयुग और त्रेतायुग की शुरुआत की थी। इसी दिन भगवान विष्णु ने नरनारायण का अवतार भी लिया था। भगवान परशुराम भी अक्षय तृतीया को जन्मे थे। यह शुभ तिथि थी जब भगवान गणेश ने महाभारत लिखना शुरू किया था। यही नहीं, केवल अक्षय तृतीया को वृन्दावन में भगवान बांके-बिहारी जी के चरणों का दर्शन होता है और बद्रीनाथ के कपाट भी खुलते हैं।
कहते हैं कि इसी दिन मां गंगा विष्णु के चरणों से धरती पर आई थीं। वैशाख शुक्ल तृतीया तिथि को आखा तीज भी कहा जाता है। यह अक्षय तीज भी कहलाता है। अक्षय तृतीया बसंत का अंत और ग्रीष्म ऋतु का आरंभ है। इसलिए इस दिन जल से भरे घड़े, कुल्हड़, सकोरे, पंखे खड़ाऊं, छाता, सत्तू, तरबूज ककड़ी और अन्य गर्मी में फायदेमंद सामग्री दान की जाती है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर गंगा स्नान करके माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु को पूजना जाता है। नैवेद्य में चने की दाल, ककड़ी और जौ का सत्तू अर्पित किया जाता है।